Thursday 22 November 2012

मन के हारे हार है मन के जीते जीत

चौरासी लाख शरीरों मे मानव शरीर ही अत्यंत दुर्लभ है । और इस शरीर से ही   कल्याण की प्राप्ति की जा सकती है । यह शरीर ही धर्म का मुख्य साधन है ।
        शरीर तो संसार मे रहता है , परंतु मन को चाहे जहां कर भी लगा कर रख सकते है , जिसमे चाहे लगा कर रख सकते है । विचार करने योग्य बात ये है की हमे मन को भगवान मे लगाना है या संसार मे । यदि मन को संसार मे लगाते है तो निश्चित रूप से मन को सुख और दुःख की अनुभूति होती है ; क्योंकि संसार मे सुख और दुःख दोनों है । मन की अनुकुल अवस्था ही सुख की अनुभूति कराती है , मन की प्रतिकूल अवस्था दुःख की अनुभूति कराती  है ।
 प्रायः सांसरिक लोग भीतर ही भीतर प्रतिकूल आचरण करते है , मन मे ईर्ष्या और द्वेष छिपाकर रखते है , नकली तथा बनावटी तौर पर अनुकूलता का आचरण प्रस्तुत करते है यानि ऊपरी तौर पर खुश रहने का दिखावा करते है और ऐसे लोग खुद को ही धोखा देने काम करते है । अपनेपन का दिखावा करते है और इस भ्रम मे जीते है कि जिस तरह वे नहीं देख पा रहे वैसे ही संसार अन्य लोग भी नहीं देख पा रहे है । इसी भ्रम वश वे सुखी होने का दिखावा करते है , दूसरों के कष्ट से उन्हे सुख मिलता है , फलां व्यक्ति सुखी क्यों है ।
संसार मे सुख का जो भ्रम है वह स्थायी नहीं है । जब कभी कही  मान-सम्मान होता है तो सुख कि अनुभूति होने लगती है और मन के पर लग जाते है वह उड़ने लगता है । जब अपमान होता है तो दुख कि अनुभूति होने लगती है । दरअसल मान-सम्मान , अपमान इत्यादि तो किसी के साथ सम्बन्धों पर आधारित होते है । जब संबंध अच्छे है तो मान मिलेगा , और मान से खुशी होगी । जब सम्बन्धों मे कटुता आएगी तो अपमान मिलने लगता है और तब दुःख होना स्वाभाविक है । ये जो हमारा मन है ये हमेशा हलचल से भरा होता है , तब शांति कि स्थिति नहीं होती है । शांति कि स्थिति तभी होती है जब मन को सांसरिक अनुकूलता और प्रतिकूलता से दूर रखा जाए ।
मन को शांत रखने का ही उपाय है कि मन को भगवान मे लगा कर रखना । मन को सदा भगवान मे लगा कर रखने पर ही शांति है अन्यथा नहीं । अक्सर देखा जाता है कि अपनी इच्क्षाओं की पूर्ति  के लिए मन भगवद्भक्ति मे लगाया जाता है , परिणाम ये होता है कि मन पूरी तरह से प्रभु भक्ति मे नहीं लग पाता है । सच्चा सुख पाने की इच्छा हो तो शांति स्वरूप नारायण की अनन्य भाव से उपासना और आराधना करनी चाहिए जिससे मन सुख , दुःख , मान ,अपमान , भोग विलास इत्यादि से ऊपर उठ जाता है ।

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