Tuesday 27 November 2012

जिहि घट दया तहां प्रभु आप






शब्द दूध घृत रामरस , मथ कर काढ़े कोय । दादू गुरु गोविंद बिन घट-घट समझ न होय । ।
मथ कर दीपक कीजिये , सब घट भया प्रकास । दादू दीवा हाथ कर  , गया निरंजन पास । ।

कहने तात्पर्य यह है कि संतों के शब्द दूध के समान होते है । इस शब्द दूध मे ही रामरस रूपी घृत समाया हुआ है । गुरु और गोविंद की कृपा से ही जीव उनके शब्दों का मनन , चिंतन तथा मंथन कर रस प्राप्त किया जा सकता है । इस राम रस से अंतःकरण  रूपी दीपक प्रज्ज्वलित हो उठता है , जिसके प्रकाश मे निरंजन निराकार परमात्मा परम तेजोमय दर्शन स्वतः ही होने लगते है ।
एक बोध कथा है - पूर्व जन्म का ज्ञान रखने वाले एक संत एक निर्जन स्थान मे मिट्टी से खेल रहे थे । मिट्टी से वे बच्चों की भांति घर बनाते और अन्य जरूरत की वस्तुएँ बनाते फिर मिटा देते और ज़ोर -ज़ोर से हंसने लग जाते । इसका भाव यह था कि मिट्टी के मकान और उससे  प्राप्त तमाम खुशियों के पीछे मनुष्य इतना उन्मत्त हुआ घूमता है उसे यह भी नहीं पता कि यह सब नष्ट होने वाला है । एक दिन राजा की सवारी उधर से निकली । संत को देख कर महाराज ने पूछा - " संत जी आप मिट्टी से क्यों खेल रहे है ? " उत्तर मिला - " शरीर मिट्टी से ही तो बना है , अंत मे मिट्टी मे ही मिल जाना है , इसीलिए अपनी प्यारी वस्तु के साथ खेल रहा हूँ । ' राजा अत्यधिक प्रसन्न हुआ ,उसने संत से कहा कि " आप हमारे साथ चल कर रहे । "  संत ने कहा -"मेरी चार शर्तें है , तुम उन्हे पूरा कर दो तो मै तुम्हारे साथ चल कर रहूँगा । " राजा के पूछने पर संत ने कहा -" मेरी पहली शर्त ये है कि जब मै सोऊ तब तुम जागते रह कर मेरी रक्षा करना , दूसरी शर्त ये है कि मेरी जो इच्छा होगी मै खाऊँगा पर तुम्हें भोजन करना मना है , तीसरी शर्त ये है मै जो चाहूँ पहनू पर तुम्हें वस्त्र धारण करना मना है , मेरी अंतिम शर्त ये है मै जहां - जहां जाऊँ तुम्हें मेरे साथ रहना पड़ेगा ।" राजा ने कहा - " मै आपके खाने पीने पहनने तथा आपकी रक्षा का प्रबंध तो कर सकता हूँ किन्तु कभी न सोऊ , भोजन न करूँ , और नग्न रहूँ ये कैसे संभव है।" संत ने कहा ," तब मै तुम्हारे साथ नहीं जा सकता । मेरा स्वामी मेरे लिए सदैव जागता रहता है , खुद खाता ,पहनता नहीं और एक क्षण के लिए भी मेरा साथ नहीं छोडता , ऐसे प्रतिपालक का साथ छोड़ कर मै कैसे चला जाऊँ । ऐसा स्वामी और कहाँ मिलेगा । ऐसे दया के सागर प्रभु के चिंतन मनन से ही जीवन का उद्धार संभव है ।





No comments:

Post a Comment