Friday 14 December 2012

प्रभु की प्राप्ति कैसे हो ?




निष्काम भाव से प्राणी मात्र की सेवा करना ही वास्तविक भजन है । यही सच्चा धर्म है । ऐसी निष्काम सेवा से प्रभु प्रेम  की प्राप्ति अवश्य होती है । जिस धर्म मे दूसरों को दुःख देने , दूसरों की हिंसा करने की बात काही गयी है , वह वास्तव मे धर्म है ही नहीं । दूसरों को सुख शांति देने से ही हमे भी सुख शांति ही मिलती है । दूसरों को दुःखी करने से हमे भी दुःख ही मिलता है इसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं है । हो सके तो मदद करने की अभिलाषा रखो परंतु वापस पाने की अभिलाषा मत रखो । कभी किसी को दुःखी देख कर खुश नहीं होना चाहिए अन्यथा प्रभु रुष्ट हो जाते है और लाख प्रयत्न करने पर भी मनाया नहीं जा सकता है , और वे खुश होने वाले को भी वही दुःख का कारण दे देते है - कहा भी गया है कि " जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी । "प्राणी मात्र का भला हो , सभी सुखी हो ,किसी को कोई दुःख न हो ऐसी भावना नित्य प्रति बार बार करनी चाहिए । ऐसी भावना से हमारे समस्त विकार नष्ट होते है , तिरस्कार और द्वेष शांत होते है तथा सुसंस्कार मन मे बैठ जाते है । हम जैसी भावना करें वैसा ही आचरण भी करें । जिसके विचार , आचरण और वाणी मे एकता है उसे भय , दुःख , चिंता और क्रोध होते ही नहीं है । इसलिए जो प्राणी मात्र का हित चाहता है  , किसी का भी सुख देख कर जिसके अंतःकरन मे प्रसन्नता होती है , दुःखी देख कर जिसका अंतःकरण द्रवित हो उठता है और वह अपनी समर्थ अनुसार भेदभाव रहित होकर सहायता करता है किन्तु बदले मे स्वयं कामना रहित रहता है ऐसे व्यक्तियों से सभी प्रेम करते है ।
जो आचरण हमे अच्छा न लगे वह हमे दूसरों से नहीं करना चाहिए । निष्काम भावना से जो परोपकार करता है वह सदैव सुखी रहता है । भगवान ने अवसर दिया है तो, जागो ,उठो और सेवा मे जुट जाओ फिर ऐसा अवसर बार बार नहीं आयेगा ।

1 comment:

  1. आपके सुझावों का स्वागत है ।

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