Monday 14 January 2013

मकर संक्रांति पर्व के विविध रूप




भारत मे समय समय पर हर पर्व को श्रद्धा , आस्था , हर्षोल्लास एवं उमंग के साथ मनाया जाता है । पर्व एवं त्योहार प्रत्येक देश की संस्कृति तथा सभ्यता को उजागर करते है । यहाँ पर पर्व त्योहार और उत्सव पृथक पृथक प्रदेशों मे पृथक पृथक ढंग से मनाए जाते हैं । मकर संक्रांति पर्व का हमारे देश मे विशेष महत्व है । इस संबंध मे श्री तुलसीदास जी ने लिखा है -

      माघ मकर गत रवि जब होई । तीरथपतिहिं आव सब कोई ॥

ऐसा कहा जाता है कि गंगा यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रयाग मे मकर संक्रांति के दिन सभी देवी देवता अपना रूप बदल कर स्नान के लिए आते है । अतएव वहाँ मकर संक्रांति के दिन स्नान करना अनंत पुण्यों को एक साथ प्राप्त करना माना जाता है। मकर संक्रांति का पर्व प्रायः प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है । खगोल शास्त्रियों के अनुसार इस दिन सूर्य अपनी कक्षाओं मे परिवर्तन कर दक्षिणायण से उत्तरायण होकर मकर राशि मे प्रवेश करते  है । जिस राशि मे सूर्य  की  कक्षा का परिवर्तन होता है , उसे संक्रांति कहा जाता है ।
मकर संक्रांति मे स्नान दान का विशेष महत्व है । हमारे धर्म ग्रन्थों मे स्नान को पुण्य जनक के साथ ही स्वस्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक माना गया है । मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाते है , गर्मी का मौसम आरंभ हो जाता है ।
उत्तर भारत मे गंगा यमुना के किनारे बसे गांवो तथा नगरों मे मेलों का आयोजन होता है । भारत मे सबसे प्रसिद्ध मेला बंगाल मे मकर संक्रांति पर्व पर " गंगासागर " मे लगता है । गंगासागर मेले के पीछे एक पौराणिक कथा है कि मकर संक्रांति को गंगा जी स्वर्ग से उतर कर भागीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम मे जाकर सागर मे मिल गईं । गंगा जी पावन जल से ही राजा सगर के साथ हजार शाप ग्रस्त पुत्रों का उद्धार हुआ था । इसी घटना की स्मृति मे गंगासागर नाम से तीर्थ विख्यात हुआ , प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मेले का आयोजन होता है , इसके अतिरिक्त दक्षिण बिहार के मदर क्षेत्र मे भी एक मेला लगता है ।
विभिन्न परम्पराओं और रीति रिवाजों के अनुरूप महाराष्ट्र मे ऐसा माना जाता है की मकर संक्रांति से सूर्य की गति तिल तिल कर बढ़ती है इसलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान्न बना कर एक दूसरे को वितरित करते हुये शुभकामनाए देकर यह त्योहार मनाया जाता है । गुजरात और महाराष्ट्र मे मकर संक्रांति पर अनेक प्रकार के खेलों का आयोजन किया जाता है ।
पंजाब और जम्मू कश्मीर मे यह त्योहार लोहड़ी नाम से मनाया जाता है । आसाम मे इसे बीहू नाम से मनाते है। तमिलनाडू मे यह त्योहार पोंगल नाम से मनाया जाता है । इसमे दाल, चावल , तिल की खिचड़ी बनाई जाती है । तमिल पंचांग का नया वर्ष पोंगल से ही शुरू होता है , इसे युगाधि भी कहते है ।
मकर संक्रांति से दिन बढ्ने लगता है और रात्री की अवधि कम होती जाती है । यह सभी जानते है कि सूर्य ऊर्जा का स्त्रोत्र है , इसके अधिक देर चमकने से प्राणि जगत मे चेतनता और उसकी कार्य शक्ति मे वृद्धि हो जाती है । इसीलिए हमारी संस्कृति मे मकर संक्रांति मनाने का विशेष महत्त्व है ।