Tuesday 5 February 2013

कुम्भ महा पर्व



इन दिनों तीर्थ राज प्रयाग मे कुम्भ महा पर्व चल रहा है असंख्य श्रद्धालु भक्त जन , संत महात्मा सभी पुण्य की लालसा मे इलाहाबाद संगम के किनारे स्नान हेतु पहुँचकर लाभान्वित हो रहें है । आइए जाने कुम्भ और इससे संबन्धित कुछ अनछुए पहलू ।
“धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा” – इस श्रुत वचन के अनुसार धर्म ही सम्पूर्ण जगत का आधार है । धर्म के आधार पर ही समस्त मानव समाज प्रतिष्ठित है । धर्म ने ही मानव समाज को एक सूत्र मे बांध रखा है ।
कुम्भ महा पर्व एक महत्वपूर्ण और सार्वभौम महापर्व माना जाता है , जिसमे विराट  मेले का आयोजन होता है । कुम्भ मेला भारत का सबसे बड़ा मेला है , केवल भारत मे ही नहीं अपितु विश्व मे शायद ऐसे विराट  मेले का आयोजन कहीं नहीं होता होगा । यही इसकी विशेषता है ।
कुम्भ का अर्थ है घट या घड़ा और इसका दूसरा अर्थ विश्वब्रम्हान्ड भी है । जहां पर विश्व भर के धर्म, जाति, भाषा तथा संस्कृति आदि का एकत्र समावेश हो वही कुम्भ मेला है । कुम्भ मेला का प्रारम्भ कब से हुआ है इसका ठीक ठीक निर्णय करना कठिन है । परंतु कुम्भ महा पर्व के विषय मे पुराणों मे एक प्रसंग आया हुआ है , जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि कुम्भ मेले का प्रारम्भ बहुत प्राचीन काल मे ही हो चुका था । आज केवल उसकी आवृत्ति मात्र होती है ।
प्रसंग इस प्रकार है कि एक समय भगवान विष्णु के निर्देशानुसार देवों तथा असुरों ने मिलकर संयुक्त रूप से समुद्र मंथन किया था । जब देवों तथा दैत्यों ने मिलकर मंदराचल पर्वत को मंथन दंड और वासुकि को नेती – मंथन रज्जु बनाकर समुद्र मंथन किया तब समुद्र से चौदह रत्न निकले थे । जो इस प्रकार हैं – 1) ऐरावत 2) कल्प वृक्ष 3)कौस्तुभ मणि 4) उच्चैःश्रवा घोडा 5) चंद्रमा 6) धनुष 7)  काम धेनु 8) रंभा 9) लक्ष्मी 10) वारुणी 11) विष 12) शंख 13) धन्वतरि 14) अमृत ।
धन्वन्तरी अमृत कलश लेकर निकले ही थे कि देवों के संकेत से देवराज इंद्र के के पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर वहाँ से भाग निकले । दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत कलश छीनने के लिए जयंत का पीछा किया । जयंत और अमृत कलश की रक्षा के लिए दौड़ पड़े । आकाश मार्ग मे ही दैत्यों ने जयंत को जाकर घेर लिया । तब तक देवता गण भी जयंत की रक्षा के लिए पहुँच चुके थे । फिर क्या था देवों और दैत्यों मे युद्ध ठन गया और बारह दिन तक युद्ध चलता रहा । दोनों दलों के संघर्ष काल मे पृथ्वी पर चार स्थानों पर अमृत कलश से अमृत छलक कर गिर गया । उस समय सूर्य आदि देवता जयंत तथा अमृत कलश की रक्षा के लिए सहायता कर रहे थे । देवों तथा असुरों के संघर्ष  को शांत करने के लिए मोहिनी रूप धारण कर प्रकट हुए तो युद्ध तत्काल थम गया और दोनों पक्षों ने यही निश्चय किया कि अमृत के वितरण का काम इन्ही को सौंप दिया जाय । तब मोहिनी रूप भगवान विष्णु ने दैत्यों को अमृत का भाग न देकर देवों को दे दिया इसलिए देव गण अमर हो गए । अमृत प्राप्ति के लिए बारह दिनों तक देवों तथा दैत्यों मे युद्ध हुआ था , देवों के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के बराबर होते है । इस कारण कुम्भ मेला भी बारह वर्ष के बाद एक स्थान पर होता आया है , इसे पूर्ण कुम्भ के नाम से जानते है । जिन चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थी वे चार स्थान है -: हरिद्वार , नासिक , प्रयाग राज , उज्जैन । इसीलिए इन चार स्थानो पर बारह वर्षों के बाद मेला लगता है , जो लगभग ढाई महीने तक चलता है । इसे पूर्ण कुम्भ के नाम से जाना जाता है । हरिद्वार तथा प्रयाग मे छ्ह सालों के बाद अर्द्ध कुम्भ का मेला भी आयोजित होता है । हरिद्वार के अर्द्ध कुम्भ के समय नासिक का कुम्भ और प्रयाग के अर्द्ध कुम्भ के समय उज्जैन का कुम्भ पड़ता है ।
1) हरिद्वार का कुम्भ :- कुम्भ राशि पर बृहस्पति का और मेष राशि पर सूर्य का योग होने पर हरिद्वार मे पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है ।  
2) प्रयाग का कुम्भ :-  वृष राशि पर बृहस्पति का योग होने पर प्रयागराज मे कुम्भ मेला आयोजित होता है ।
3) उज्जैन का कुम्भ :- सिंह राशि पर बृहस्पति का और मेष राशि पर सूर्य का योग होने पर उज्जैन मे पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है। 
4) नासिक का कुम्भ :- वृश्चिक राशि पर सूर्य का योग होने पर नासिक मे पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है ।
कुम्भ मेलों का महातम्य बताते हुए यह कहा भी गया है :-
 " अश्वमेघसहस्त्राणी  बाजपेयशतानी च  
   लक्षं प्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नाने तत्फलम् ॥"
कुम्भ पर्व मे जाति , धर्म, संप्रदाय, भाषा , राज्य , संस्कृति , साहित्य , दर्शन , वेषभूषा , आदि सभी संदर्भों मे अनेकता मे एकता का दर्शन होता है । साधू संत , धनी मानी , विद्वान ,कर्मकांडी , योगी , ज्ञानी ,कथा वाचक , तत्त्वदर्शी , सिद्ध महापुरुष , सेठ साहूकार , भिखारी व्यापारी , गृहस्थ ,सन्यासी , ब्रम्ह्चारी, कल्पवासी , अधिकारी ,बूढ़े , जवान , आबालवृद्धवनिता सभी का स्वागत होता है। विभिन्न प्रकार का धार्मिक संगम इन मेलों मे देखने को मिलता है जो एक सहज आकर्षण है ।
आज भी बड़े समारोह के साथ कुम्भ का पर्व मनाया जाता है , जो भारत वर्ष के उस प्राचीनतम महान गौरव को उजागर करता है ।

No comments:

Post a Comment